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[[Category:कवितायें]]
[[Category:नागार्जुन]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ <poem>>
अभी-अभी उस दिन मिनिस्टर आए थे
 
बत्तीसी दिखलाई थी, वादे दुहराए थे
 
भाखा लटपटाई थी, नैन शरमाए थे
 
छपा हुआ भाषण भी पढ़ नहीं पाए थे
 
जाते वक्त हाथ जोड़ कैसे मुस्कराए थे
 
अभी-अभी उस दिन...
 
धरती की कोख जली, पौधों के प्राण, गए
 
मंत्रियों की मंत्र-शक्ति अब मान गए
 
हालत हुई पतली, गहरी छान गए
 
युग-युग की ठगिनी माया को जान गए
 
फैलाकर जाल-जूल रस्सियाँ तान गए
 
धरती की...
'''(1953 में रचित)</Poem>
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