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अस्वीकरण
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अश्वत्थ / प्रभाकर माचवे
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13:40, 31 अगस्त 2006
::जग में लहरी नूतनता की
पर मैं वैसा ही बाकी हूँ
::वैसी
कडियाँ
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एकाकी ।
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घनश्याम चन्द्र गुप्त