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खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैर / ज़फ़र
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13:34, 12 मई 2009
लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर <br><br>
बेदर्द तू सुने ना सुने
लेक
लेकिन ये
दर्द-ए-दिल <br>
रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर <br><br>
तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी <br>
दिलवाता ऐ "ज़फ़र" है मुक़द्दर कहे बग़ैर
हेमंत जोशी
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