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जीवन साफल्य / मुकुटधर पांडेय

23 bytes removed, 09:29, 1 सितम्बर 2006
अंतर्हित हो वही अकेला सदा सब जगह रहता है
दया स्त्रोत स्रोत उसका हम सबर सब पर अविश्रांत नित बहता है
मन वच और कर्म से जिसने ऐसा प्रभु को अनुमाना
न्याय-न्याय अन्याय बिसार, स्वार्थ से अंध न जो न गर्व बैठा है
विद्या, बल, पौरुष, पाकर भी जो न गर्व से ऐंठा है
उसने दुःख दरिद्र हरने का अति पवित्र व्रत धारा है
जिसके जिसने सतत लोक-सेवा का ग्रहण किया है बर वाना
सफल किया, बस उसी एक ने इस जग में अपना आना ।