{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>न घबराए कभी कहीं, जो न हारे तकलीफ़ों सेजब भी हारे, हारे अपने, साथी और रफीक़ों से
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~अपने मन के घाव दिखाए, मेहनतकश इंसानों ने,मोड़ रखा अब तक मुख जिनसे, है जग के भगवानों ने
न घबराए कभी कहींमेहनतकश पर समझ चुके हैं, जो अब हर चाल ज़माने कीअब न हारे तकलीफ़ों से<br>जब भी हारे, हारे अपनेहामी भरता कोई, साथी और रफीक़ों से<br><br>मुफ़्त में ही लुट जाने की
अपने मन के घाव दिखाए, मेहनतकश इंसानों नेअब न लाभ उठाने देंगे,<br>ग़ुरबत और लाचारी कामोड़ रखा भीख पे जीना छोड दिया अब तक मुख जिनसे, है जग के भगवानों ने<br><br>हक़ मांगें ख़ुद्दारी का
मेहनतकश पर समझ चुके हैं, अब हर चाल ज़माने की<br>अब न हामी भरता कोई, मुफ़्त में ही लुट जाने की<br><br> अब न लाभ उठाने देंगे, ग़ुरबत और लाचारी का<br>भीख पे जीना छोड दिया अब, हक़ मांगें ख़ुद्दारी का<br><br> अगर नहीं हालत बदली, हालात को बदला जायेगा<br>समय बदलना ही शायद, अब इंक़लाब कहलाएगा<br><br/poem>