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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 3

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|रचनाकार=रामधारी सिंह '"दिनकर'" |संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह '"दिनकर'"
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कर्ण मुग्ध हो भक्ति-भाव में मग्न हुआ-सा जाता है,
मोती बरसा वैश्य-वेश्म में, पड़ा खड्‌ग क्षत्रिय-कर में।
 
 
 
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