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बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे / ग़ालिब
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07:57, 18 मई 2009
हमपेशा-ओ-हममशरब-ओ-हमराज़<ref>सहव्यवसायी, सहपंथी
</ref> है मेरा
'गा़लिब' को बुरा
क्योँ
क्यों
कहो अच्छा मेरे आगे
</poem>
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द्विजेन्द्र द्विज
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