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यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल <br>
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर शर<ref>चिंगारी का नृत्य</ref> होने तक <br><br>
ग़मे-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग <ref>म्रुत्यु के अतिरिक्त</ref>इलाज <br>
शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक <br><br>
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