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साक्षात्कार, संस्मरण और तुम्हारे विचारवान लेख कविता हमेषा हमेशा नहीं होती वक्तव्य
जबकि, वक्तव्य में निकल ही पड़ते हैं विचार
धर्म समाज की जरुरत ज़रूरत है
मार खाने से ही आता है समझ में,
एक अदला धर्म
सांगठनिक बुनावट का
खूबसूरत ख़ूबसूरत वस्त्र भी नहीं छुपा पायेगापाएगा
नापाक इरादों को,
सांगठनिक कसीदाकारी
गुंडे, हत्यारे और लम्पट ।
गिरोह लम्पटों की जरुरत ज़रूरत है।
तुम्हारे संस्मरणों में
तुम्हारे पाला बदलने के कारणों को
ढूंढा नहीं जा सकता
किसी उल्लू की आंख आँख से ;
पहाड़ की खोह में
समूचित धूप न पड़ पाने की वजह वज़ह से बची हुई थोड़ी-सी बर्फ बर्फ़ की
गढ़ी गयी आकृति; ओम
तुम्हारे भीतर
तमसो मां मा ज्योतिर्गमय का
नाद उत्पन्न कर रही है,
और प्रार्थना में बुदबुदाते
अपनी नादानी का
झूठा सहारा ले रही है
तुम्हारी तिजोरियां तिजोरियाँ
पुरस्कारों से भरी पड़ी हैं
जिनके भार से दबी जा रही हैं
तुम्हारी संवेदनायेंसंवेदनाएँ
बेशक भाषा की जादूगरी का
गजब का करिश्मा करते रहे हो तुम
हाथ की सफाई सफ़ाई का
जबरदस्त अभ्यास है तुम्हें
पर घृणित विचारों में लिपटी तुम्हारी भाषा
हत्यारों के रथ पर जुते घोड़ों को
धीरे-धीरे मारते हो
ताकि उनकी बग्गी बग्घी को खींचता घोड़ा दौड़े बहुत-बहुत तेजतेज़
और हत्यारे हत्याओं से फैला दें
इतनी दहश्त
कि हत्यारों का समर्थन करना
तुम्हारी मजबूरी मज़बूरी जान पड़े
अचानक तुम्हारे पाला बदल लेने पर
हकबका कर भी तुम्हारे विरोध की
हिम्मत न जुटा पाये पाए
कोई इक्का-दुक्का बचा हुआ
विरोधी हत्यारों का
ज्ञानपीठ हो
बंडियों के नीचे छिपाये छिपाए हुए
गात पर रगड़ खाते
जनेऊ के लटकते धागे को
छुपाने की अब कोई जरुरत ज़रूरत नहीं
तुम्हारे ध्वज वाहकों ने
त्रिशूल, बल्लम और नृशंस हत्या के
उम्दा से उम्दा हथियारों से लैस
हत्यारों की फौज
तुम्हारी हिफाजत हिफ़ाज़त में कर दी है खड़ी
यूँ ही नहीं निकल पड़ा है
तुम्हारा अवचेतन
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