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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 5

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|रचनाकार=रामधारी सिंह '"दिनकर'" |संग्रह= रश्मिरथी / रामधारी सिंह '"दिनकर'"
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'सिर था जो सारे समाज का, वही अनादर पाता है।
जिसमें हो धीरता, वीरता और तपस्या का बल भी।
 
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