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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2
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....ये कवितायें कुछ सपनों, कुछ फूलों, कुछ मौसमों के रंगों और कुछ नदियों, पहाडों, मैदानों की स्मृतियों से मिल कर बनी है - जिन्हें अपने चार सपनों की अनंत दृश्यावलियों में वेरा देखती रही । आज जहां भी, जिस भी गांव-शहर के गली-मकानों में वेरा सपना देख रही है उनका पता इन कविताओं में है । वेरा का सपना भी इनमें है और उसके शहर का रास्ता भी ....
 
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