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ज़ौर से बाज़ आये पर बाज़ आये क्या / ग़ालिब
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20:12, 20 मई 2009
कहते हैं हम तुम को मुँह दिखलायें क्या<br><br>
रात
-
दिन गर्दिश में हैं सात आस्माँ <br>
हो रहेगा कुछ न कुछ घबरायें क्या <br><br>
लाग हो तो उस को हम समझें लगाव <br>
जब न हो कुछ भी तो
धोका
धोखा
खायें क्या <br><br>
हो लिये क्यों नामाबर के साथ-साथ <br>
हेमंत जोशी
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