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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ 'पंकिल'
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<poem>
 
मुख मन अन्तर श्वाँस श्वाँस सब सच्चामय कर दे मधुकर
सच्चा प्रेम सार जग में कुछ और न सार कहीं निर्झर
सच्चा से नाता हो तो घर आ जाते सौभाग्य सकल
टेर रहा है भाग्यविधात्री मुरली तेरा मुरलीधर।।130।।
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