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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ 'पंकिल'
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<poem>
 
भूत मात्र में व्याप्त ईश का सूत्र न छोड़ कभीं मधुकर
कर्म त्याग संभव न त्याग भी तो है एक कर्म निर्झर
बुद्धि न श्रद्धा सदृश पावनी श्रद्धा सम बलवान कहाँ
टेर रहा श्रद्धातरंगिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।135।।
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