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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ 'पंकिल'
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<poem>
 
खड़े दर्शनार्थी अपार दरबार सजा उसका मधुकर
उपहारों की राशि चरण पर उसके रही बिछल निर्झर
उस की ही चेतना विश्व का प्रलय सृजन फेनिल पंकिल
टेर रहा है दिगदिगंतिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।150।।
<poem/poem>