Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’'पंकिल'
}}
<poem>
 
अपनी ही विरचित कारा में बंधा तड़पता तू मधुकर
अपनी ही वासना लहर से पंकिल किया प्राण निर्झर
रिक्त बनोगे तो पाओगे प्रियतम प्राण रसाकर्शण
टेर रहा है निरहंकारा मुरली तेरा मुरलीधर।।105।।
<poem/poem>