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<poem>
गोपिन के अँसुवान के नीर पनारे बहे बहिकै भए नारे ।
 
नारे भए ते भई नदियाँ नदियाँ नद ह्वै गए काटि कगारे ।
 
बेगि चलौ तो चलो ब्रज को कवि तोष कहै ब्रजराज दुलारे ।
 
वे नद चाहत सिँधु भए अब सिँधु ते ह्वै हैँ जलाजल खारे ।
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