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मैं कुछ नहीं भूली / कविता वाचक्नवी
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17:27, 5 जून 2009
नहीं भूले हम।
आज लगता है-
मैंने उसका दिल गल-घिसाया था।
पूस माघ की ठंडी रातें
‘मौसी’ के गले हाथ
हाथ-पोंछते हाथ
सब याद है मुझे।
</poem>
चंद्र मौलेश्वर
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