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माँ! / कविता वाचक्नवी

1 byte added, 20:07, 5 जून 2009
}}
<poem>
'''माँ'''
 
 
वे मधुवांछी
अभिलाषी जन
पूरा घिरा
प्राणतल मेरा।
   ::: अभ्यासों से ::: पुनर्जन्म पा-पा ::: मिट जातीं ::: ईखों की अजस्र ::: मृदुधारा को ::: लपटें ::: निःशेष करातीं।
</poem>
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