Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''चलते-चलते''' गली बस्ती मुहल...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''चलते-चलते'''

गली
बस्ती
मुहल्ले
सारा शहर
सारा देश
सो गया।

तहखाने से उठकर
दो पाँव
घूमते हैं-
गली
बस्ती
बाज़ार
अटारी
चौबारा
दालान
चबूतरा
चौपाल
सड़क
कमरे
पहाड़
हाट
जंगल।
भटकते हैं-
हरियाली
पानी
फूल
चहल-पहल
विश्रांति
जाने क्या-क्या खोजते।

दो पावों के ऊपर
सारी देह गायब है,
उजाले में
बाहर नहीं आ सकते।

बस
दो यायावरी पाँव
भटकते हैं इसीलिए
अंधेरे में
अकेले।
</poem>