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|रचनाकार=रवीन्द्र दास
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सुन्दर सजाए मंच पर
 
चौंक रही है रौशनी
 
रंग बिरंगी
 
खचाखच भरा है हॉल
 
कि प्रस्तुति है
 
सुप्रसिद्ध सितारवादिका सुगन्धा दास की
 
लोग बेसब्र हैं
 
उनकी बेसब्री के अपने अपने कारण हैं
 
तरह तरह के लोग
 
भाँति भाँति की बातें
 
सुगन्धा दास कोई एक.
 
आ चुकी है मंच पर मुस्कुराती हुई
 
निहाल हो चुकी है भीड़
 
निढ़ाल हो चुकी है भीड़
 
गज़ब की मोहिनी शक्ति है सुगन्धा दास में
 
बता रखा है पहले ही
 
कला समीक्षकों ने
 
चौंकती रौशनी में नहीं पहुँच रही है
 
कद्रदानों की नज़र ठीक ठीक
 
फिर भी आभास है
 
अपना अपना संचित विश्वास है
 
तरह तरह के देखनेवाले
 
हो रहे हैं संतुष्ट अकेले अकेले
 
सचमुच गज़ब ही चीज़ है
 
सुगन्धा दास सितारवादिका सुप्रसिद्ध !
</Poem>
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