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हे मकड़ी / ज़्देन्येक वागनेर
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22:14, 6 जून 2009
हे मकड़ी, तुम केश में
क्यों घूमने जाती हो?
आशा है तुम रोज़ कन्या काभाग्य खोला करती हो।
अब यही कविता चेक भाषा में पढ़े :
Icebearsoft
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