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19:26, 8 जून 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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समीर स्नेह-रागिनी सुना गया,
तड़ाग में उफान-सा उठा गया,
तरंग में तरंग लीन हो गई;
झुकी निशा,
झँपी दिशा,
झुके नयन!
बयार सो गई अडोल डाल पर,
शिथिल हुआ सुनिल ताल पर,
प्रकृति सुरम्य स्वप्न बीच खो गई;
गई कसक,
गिरी पलक,
मुँदे नयन!
विहंग प्रात गीत गा उठा अभय,
उड़ा अलक चला ललक पवन मलय,
सुहाग नेत्र चुमने चला प्रणय;
खुला गगन,
खिले सुमन,
खुले नयन!