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फ़िक्र ही ठहरी तो दिल को फ़िक्र-ए- ख़ुबाँ क्यों न हो / जोश मलीहाबादी
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14:35, 11 जून 2009
}}<poem>
[[Category:ग़ज़ल]]
फ़िक्र ही ठहरी तो दिल को फ़िक्र-ए- ख़ुबाँ क्यों न हो ख़ाक
होन अहै
होना है
तो ख़ाक-ए-कू-ए-जानाँ क्यों न हो
ज़िस्त
ज़ीस्त
है जब मुस्तक़िल आवारा गर्दी ही का नाम
अक़्ल वालो फिर तवाफ़-ए-कू-ए-जानाँ क्यों न हो
हेमंत जोशी
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