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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''आयो घोष बड़ो व्यापारीऔरत लोग<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[देवेन्द्र आर्ययेव्गेनी येव्तुशेंको]]
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आयो घोष बड़ो व्यापारीमेरे जीवन में आईं हैं औरतें कितनीपोछ ले गयो नींद हमारीगिना नहीं कभी मैंनेपर हैं वे एक ढेर जितनी
अपने लगावों का मैंनेकभी जमूरा कभी मदारीकोई हिसाब नहीं रक्खापर चिड़ी से लेकर हुक्म तक की बेगमों को परखाखेलती रहीं वे खुलकर मुझसे उत्तेजना के साथऔर भला क्या रखा थदुनिया के इस सबसे अविश्वसनीयइसको कहते हैं व्यापारीबादशाह के पास
रंग गई मन की अंगियासमरकन्द में बोला मुझ से एक उज़्बेक-चूनरदेह ने जब मारी पिचकारी"औरत लोग होती हैं आदमी नेक"औरत लोगो के बारे में मैंने अब तक जो लिखी कविताएँएक संग्रह पूरा हो गया और वे सबको भाएँ
अपना उल्लू सीधा हो बसमैंने अब तक जो लिखा है और लिखा है जैसाकैसा रिश्ता कैसी यारीऔरत लोगों ने माँ और पत्नी बनलिख डाला सब वैसा
आप नशे पर न्यौछावर पुरुष होसकता है अच्छा पिता सिर्फ़ तबमैं अब जाऊँ किस पर वारीमाँ जैसा कुछ होता है उसके भीतर जबऔरत लोग कोमल मन की हैं दया है उनकी आदतमुझे बचा लेंगी वे उस सज़ा से, जो देगी मुझेपुरुषों की दुष्ट अदालत
बिकते बिकते बिकते बिकतेमेरी गुरनियाँ, मेरी टीचर, औरत लोग हैं मेरी ईश्वररुह हो गई पृथ्वी लगा रही है देखो, उनकी जूतियों के चक्करमैं जो कवि बना हूँ आज, कवियों का यह पूरा समाजसब उन्हीं की कृपा हैऔरत लोगों ने जो कहा, कुछ भी नहीं वृथा है सरकारी
अब सुन्दर, कोमलांगी लेखिकाएँ जब टूट गई ज़ंजीरेंगुजरें पास से मेरेक्या तुम जीते क्या मैं हारीमेरे प्राण खींच लेते हैं उनकी स्कर्टों के घेरे
भूख हिकारत और गरीबी
किसको कहते हैं खुद्दारी?
दुनिया की सुंदरतम् कवितासोंधी रोटी, दाल बघारीमूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
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