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लेखक: [[Category:हरिवंशराय बच्चन]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:हरिवंशराय बच्चनरुबाई]]{{KKSandarbh|लेखक=हरिवंशराय बच्चन|पुस्तक=मधुशाला|प्रकाशक=|वर्ष=1935|पृष्ठ=~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}
वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,<br>
जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबंिबत प्रतिबिंबत प्रतिपल, वह मेरा प्याला,<br>
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,<br>
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१।<br><br>
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२।<br><br>
मदिरालय के द्वार ठोंकता ठोकता किस्मत का छंछा प्याला,<br>
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,<br>
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!<br>
कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,<br>
कहँा कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!<br>
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?<br>
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।१२४।<br><br>
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला, <br>
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,<br>
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उज्ञल्तऌार उत्तर पाया -<br>
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५।<br><br>
'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'<br>
'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',<br>
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंिडत पंडित जी<br>
'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।१२६।<br><br>
जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,<br>
जिस कर को छूू छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,<br>
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,<br>
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९।<br><br>
मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,<br>
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,<br>
जिसकी जैसी रुिच रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।१३१।<br><br>
यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,<br>
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५।<br><br>
'''==पिरिशष्ट से'''<br><br>==
स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला,<br>
मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला,<br>
मेरे तन के लोहू में है पचहज्ञल्तऌार पचहत्तर प्रतिशत हाला,<br>
पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,<br>
मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।<br><br>