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उनींदे की लोरी (कविता) / गिरधर राठी
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16:42, 22 जून 2009
<poem>
साँप सुनें अपनी फुफकार और सो जाएँ
चींटियां
चींटियाँ
बसा लें घर-बार और सो जाएँ
गुरखे कर जाएँ ख़बरदार और सो जाएँ
</poem>
अनिल जनविजय
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