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कविता-5 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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रोना बेकार है
व्यर्थ है यह जलती अग्नि ईच्छाओं की।
सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है।
Pratishtha
KKSahayogi,
प्रशासक
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