647 bytes added,
10:40, 6 जुलाई 2009 तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त।
ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जाविदाँ न था॥
आ गई है तेरे बीमार के मुँह पर रौनक़।
जान क्या जिस्म से निकली, कोई अरमाँ निकला॥
रस्मेख़ुद्दारी से गो वाक़िफ़ न थी दुनिया-ए-इश्क़।
फिर भी अपना ज़ख़्मेदिल शरमिन्द-ए-मरहम न था॥