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दो शेर-एक मक़्ता / फ़ानी बदायूनी
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तर्के-तदबीर को भी देख लिया।
यह भी तदबीर कारगर न हुई॥
यूँ मिली हर निगाह से वो निगाह।
एक की एक को ख़बर न हुई॥
आज तस्कीने-दर्देदिल ‘फ़ानी’।
वह भि चाहा किये मगर न हुई॥
चंद्र मौलेश्वर
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