Changes

नया पृष्ठ: आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री। सुबह दम देखकर गुलों का निखार॥ द...

आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री।

सुबह दम देखकर गुलों का निखार॥

दूर से देख लो हसीनों को।

न बनाना कभी गले का हार॥


अपने ही साये से भड़कते हो।

ऐसी वहशत पै क्यों न आए प्यार॥


तू भी जी और मुझे भी जीने दे।

जैसे आबाद गुल से पहलू-ए-ख़ार॥


बेनियाज़ी भली कि बेअदबी।

लड़खछ़्आती ज़बाँ से शिअवये-यार॥