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नाख़ुदा! कुछ ज़ोरे-तूफ़ाँ आज़माई भी दिखा।
‘यास’! गुमराही से अच्छी ज़हमते-वामान्दगी।
डाल लो ज़ंजीर कोई पायेकफ़पायेकज़-रफ़्तार में॥
शरमिन्दयशरमिन्दये-कफ़न न हुए आसमाँ से हम।
मारे पडे़ हैं सायए-दीवरेदीवारे-यार से॥
अपनी तो मौत तक न हुई अख़्तियार मैं॥
 
 
दुनिया से ‘यास’ जाने को जी चाहता नहीं।
 
वल्लाह क्या कशिश है इस उजडे़ दयार में॥