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<poem>
आशिक़ी में है महवियत दरकार।
 
राहते-वस्ल-ओ-रंजे-फ़ुरक़त क्या?
 
न गिरे उस निगाह से कोई।
 
और उफ़्ताद क्या, मुसीबत क्या?
 
जिनमें चर्चा न कुछ तुम्हारा हो।
 
ऐसे अहबाब, ऐसी सुहबत क्या?
 
जाते हो जाओ, हम भी रुख़सत हैं।
 
हिज्र में ज़िन्दगी की मुद्दत क्या?
</Poem>
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