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नहीं निहारा / रमेश कौशिक

4 bytes removed, 15:35, 22 जुलाई 2009
<poem>
जो कुछ भी घटा है
::या
घटता जा रहा है
उस सबके पीछे
मेरा हाथ रहा है
लेकिन इसको मैंने
::::कभी नहीं::::स्वीकारा
क्योंकि
उसे कभी
मेरी आँखों ने
::::नहीं निहारा
</poem>
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