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11:31, 6 जुलाई 2006 '''लेखक: [[मैथिलीशरण गुप्त]]'''
[[Category:मैथिलीशरण गुप्त]]
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी<br>
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी<br>
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां<br>
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां<br>
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है<br>
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है<br><br>
यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं<br>
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं<br>
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े<br>
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े<br><br>
वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे<br>
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे<br>
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा<br>
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा<br><br>
संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी<br>
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी<br>
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में<br>
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में<br><br>
वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे<br>
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे<br>
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे<br>
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे<br><br>