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[[Category:बाल-कविताएँ]]
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आँखें मलकर धीरे-धीरे
सूरज जब जग जाता है ।
सूरज खूब नहाता है
कभी तैरता है लहरों पर
डुबकी कभी लगाता है । <br>पर्वत –घाटी पार करे<br> मैदानों में चलता है ।<br> दिनभर चलकर थक जाता <br> साँझ हुए फिर ढलता है ।<br> नींद उतरती आँखों में <br> फिर सोने चल देता है ।<br>
हमें उजाला दे करके<br>पर्वत –घाटी पार करेमैदानों में चलता है ।दिनभर चलकर थक जाता साँझ हुए फिर ढलता है ।
नींद उतरती आँखों में फिर सोने चल देता है ।हमें उजाला दे करकेकभी नहीं कुछ लेता है । <br/Poem>