Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवालमुकुटधर पांडेय}}
<poem>बर्षा-बहार सब के, मन को लुभा रही है
नभ में छटा अनूठी, घनघोर छा रही है।