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मन की गांठ / किशोर काबरा

3 bytes removed, 05:21, 17 सितम्बर 2006
माया के परदे में छिपकर सबको नाच नचाता जो,
नहीं मिलेगा वह मंदिर में, मस्ंजिद मस्जिद में, गुरूद्वारे में।