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11:58, 30 जुलाई 2009 एकांत के प्रतिबिम्ब मैं,
डूबता-उतरता हुआ मेरा मन,
अन्तरंग विथियो में
परिमार्जित होते हुए
मेरे सुख-दुःख,
नीले-नीले सपनो को
सजाते-संवारते हुए
मेरी पलकों के पंख
और शब्दों के
कोलाहल से भरी हुई,
मेरी चुप्पी ने
एक दिन,
अपना सारा कुछ
बाँट दिया
उंगलियों को,
उंगलियों ने धीरे-धीरे
सब कुछ निकलकर
डायरी के पन्नो में,
रख दिया,
अब बांटने जैसा
कुछ भी नहीं हैं
मेरे पास,
तुम्हें दे सकूँ ऐसा
कुछ भी नहीं हैं
मेरे पास.