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17:52, 30 जुलाई 2009 <poem>
क्षण भर में जो बात हो गई
जनम-जनम सौग़ात हो गई
कैसी आँख झुकाई उसने
रहा अबोला बात हो गई
मुँह में राम बगल में छुरियाँ
लेकर भीतर घात हो गई
शह भी हमने दी थी फिर भी
अपनी बाज़ी मात हो गई
बीहड़ वन है सफर पहाड़ी
दूर ठिकाना रात हो गई
बात ज़रा सी छेड़ी ही थी
बस्ती बस्ती बात हो गई
सच्चाई फिर गांधी ईसा
दयानन्द सुकरात हो गई
कितना प्रेम सताया होगा
शे'रों की बरसात हो गई
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