528 bytes added,
16:50, 3 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
तू हुस्न की नज़र को समझता है बेपनाह।
अपनी निगाह को भी कभी आज़मा के देख॥
परदे तमाम उठा के न मायूसे-जलवा हो।
उठ और अपने दिल की भी चिलमन उठा के देख॥
</poem>