<div class='box' style="background-color:#336699;width:100%; align:centersecH1Head"><div class='boxtop'><div></div></div><div class='boxheader' style='background-color:#336699; color:#ffffff'></div><div id="kkHomePageSearchBoxDivsecH1Text" class='boxcontent' style='background-color:#c2d1e1;border:1px solid #336699;'><!----BOX CONTENT STARTS------center> <table width=100% style="background:none;background-color:#c2d1e1; height:150"cellpadding=2 cellspacing=2><tr><td colspan=2valign="top">[[चित्र:Leave-48x48.png|middle]] <font sizestyle=4"font-size:15px; font-weight:bold">रेखांकित रचनाकार</font></td></tr><tr><td valign="top">[[चित्र:SurdasShamsher 1.jpg|70px|right|top]]</td><td valign="top">हिन्ढी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में '''महाकवि [[सूरदासशमशेर बहादुर सिंह]]''' का नाम अग्रणी है। उनका जन्म १४७८ ईस्वी में मथुरा आगरा मार्ग मुजफ्फरनगर के किनारे स्थित रुनकता नामक गांव एलम ग्राम में हुआ। सूरदास शिक्षा देहरादून तथा प्रयाग में हुई। प्रयोगवाद और नई कविता के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषया कवियों की प्रथम पंक्ति में मतभेद इनका स्थान है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य इनकी शैली अंग्रेजी कवि एजरा पाउण्ड से हुई प्रभावित है। इनके मुख्य काव्य संग्रह हैं- 'कुछ कविताएँ', 'कुछ और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। अष्टछाप कवियों में एक कविताएँ', 'इतने पास अपने', 'चुका भी नहीं हूँ मैं', 'बात बोलेगी', 'उदिता' तथा 'काल तुझसे होड है मेरी'। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में १५८० ईस्वी में हुई।ये कबीर सम्मान तथा [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] से सम्मानित हुए।
</td></tr></table>
<!----BOX CONTENT ENDS------></div><div class='boxbottom'><div></div></divcenter></div>