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01:24, 26 दिसम्बर 2006
तुम अगर ना साथ दोगे
पूर्ण कैसे छंद होंगे।
भावना के ज्वार कैसे
देह से हूं दूर लेकिन
हूं हृदय के पास भी मैं।
नयन में सावन संजोए
गीत हूं¸ मधुमास भी मैं।
पी गई सारा अंधेरा
दीप–सी जलती रही मैं।
इस भरे पाषाण युग में
मोम–सी गलती रही मैं।