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|संग्रह=पंख और पतवार / केदारनाथ अग्रवाल
}}
<poem>
आतंकित करता है मुझे मेरा सम्मान ।
चाहे रहूं अवमानित ।
 ('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से )</poem>
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