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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
}}
<poem>
हुए शूल अक्षत मुझे धूलि चन्दन!
अगरु धूम-सी साँस सुधि-गन्ध-सुरभित,
बनी स्नेह-लौ आरती चिर-अकम्पित,
हुआ नयन का नीर अभिषेक-जल-कण!
सुनहले सजीले रँगीले धबीले,
हसित कंटकित अश्रु-मकरन्द-गीले,
बिखरते रहे स्वप्न के फूल अनगिन!
असित-श्वेत गन्धर्व जो सृष्टि लय के,
दृगों को पुरातन, अपरिचित ह्रदय के,
सजग यह पुजारी मिले रात औ’ दिन!
'''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्मा|दीपशिखा]] से'''<br><br>परिधिहीन रंगों भरा व्योम-मंदिर,चरण-पीठ भू का व्यथा-सिक्त मृदु उर,ध्वनित सिन्धु में है रजत-शंख का स्वन!
हुए शूल अक्षत मुझे धूलि चन्दन!<br>अगरु धूम-सी साँस सुधि-गन्ध-सुरभितकहो मत प्रलय द्वार पर रोक लेगा,<br>बनी स्नेह-लौ आरती चिर-अकम्पित,<br>वरद मैं मुझे कौन वरदान देगा?हुआ नयन का नीर अभिषेक-जल-कण!<br>सुनहले सजीले रँगीले धबीले,<br>हसित कंटकित अश्रु-मकरन्द-गीले,<br>बिखरते रहे स्वप्न कब सुरभि के लिये फूल अनगिन!<br>असित-श्वेत गन्धर्व जो सृष्टि लय के,<br>दृगों को पुरातन, अपरिचित ह्रदय के,<br>सजग यह पुजारी मिले रात औ’ दिन!<br><br>बन्धन?
परिधिहीन रंगों भरा व्योम-मंदिर,<br>चरण-पीठ भू का व्यथा-सिक्त मृदु उर,<br>ध्वनित सिन्धु में है रजत-शंख का स्वन!<br><br> कहो मत प्रलय द्वार पर रोक लेगा,<br>वरद मैं मुझे कौन वरदान देगा?<br>हुआ कब सुरभि के लिये फूल बन्धन?<br><br> व्यथाप्राण हूँ नित्य सुख का पता मैं,<br>धुला ज्वाल से मोम का देवता मैं,<br>सृजन-श्वास हो क्यों गिनूँ नाश के क्षण!<br><br/poem>
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