ईंट, पत्थर, पानी और आलव का घर
सेंक रोटी हाथ की रेखा दहेगी
वह नदी जो जंगलों में बह रही है
हर लहर हो वाष्पित अंत: तपन से
याद के दीपक विसर्जित कर जलेगी
उसकी कलाई पर लिखा है नाम तेरा
क्यों बंधा ये बंध तुझ से, वो ना समझी
रेशमी ये गांठ तुझसे ना खुलेगी
तोलता जिसमें है तू कुछ काँच, हीरे
खुशबूएं ये उस तराज़ू ना तुलेंगीं
होंठ पे गुड़मुड़ रखी एक मुस्कुराहट
फिर कहेगी गीत से, तू क्यों खड़ा है
जिन्दगी की टेक है, चलती रहेगी
उसकी कलाई पर लिखा है नाम तेरा
२ नवम्बर ०८
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