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याद कुछ पक्का नहीं है . . .
क्षण नहीं हैं प्रेम के बस, प्रीत जब गहरी हुई थी
तप्त होकर पीर से पक्के हुए जीवन-घड़े थे
आज गिन कर वक्त नापें अर्थहीना हो गया है
याद कुछ पक्का नहीं है . . .
 
 
१७ अक्तूबर २००८
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