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तुम न आये एक दिन / ज़फ़र

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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक
हम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलक
तुम न आये दर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन का वादा कर दो दिन तलक<br>हम पड़े तड़पा किये दोरहता है उस नाज़नीं को दर्द-दो पहर ए-सर दो दिन तलक<br><br>
दर्ददेखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किसू की चश्म-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन<br>मस्तरहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक<br><br>
देखते हैं ख़्वाब में जिस गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन किसू की चश्म-ए-मस्त<br>के बादरहते हैं तो जियें हम दो जहाँ से बेख़बर और इस उम्मीद पर दो दिन तलक<br><br>
गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बाद<br>तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक<br><br> क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये<br>घर से जो निकले न अपने तुम "ज़फ़र" दो दिन तलक<br><br/poem>
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