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चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है / हसरत मोहानी
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07:23, 15 अगस्त 2009
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
बावजूदे-इद्दआए
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इत्तिक़ा<ref>पवित्रता की कस्मों के बावजूद</ref> ‘हसरत’ मुझे
आज तक अहद-हवस का वो ज़माना याद है
<
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poem>
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द्विजेन्द्र द्विज
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