|रचनाकार=नोमान शौक़
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MERCY KILLING पर लिखना चाहता हूँ
एक सुंदर सी कविता
यहाँ बैठकर
लेकिन मैं कर नहीं पा रहा
उस मार्मिक सौन्दर्य की अनुभूति
जो किसी लाश के चेहरे पर बिखरी
ज़र्द मासूमियत को
सुनसान आँखों से सहलाने के बाद होती है
MERCY KILLING मानस-पटल पर लिखना चाहता हूँ<br />बनने वाले बिम्ब केएक सुंदर सी कविता<br />चीथडे क़र देती हैंयहाँ बैठकर<br /> लेकिन मैं कर नहीं पा रहा<br />उस मार्मिक सौन्दर्य की अनुभूति<br />जो किसी लाश परिजनों के चेहरे पर बिखरी<br />विलाप से उठने वाली ज़र्द मासूमियत को<br />सुनसान आँखों से सहलाने के बाद होती है<br />ध्वनि तरंगें
मानस-पटल दर्द से तड़पते मरीज़ कीकोई दुनिया नहीं होतीख़ूबसूरत नर्सें कम नहीं कर सकतींपेशानी पर बनने झूलती लटों सेब्रेन-टयूमर से होने वाले बिम्ब के<br />दर्द कोचीथडे क़र देती हैं<br />जब मरीज़ आखिरी गाँठ खोल रहा होपरिजनों के विलाप बची-खुची साँसों से उठने वाली <br />ध्वनि तरंगें<br />बंधी पोटली की
दर्द तैयार बैठे हैं सगे-सम्बंधीडॉक्टर और यमदूत से तड़पते मरीज़ की<br />झगड़ने के लिएकोई दुनिया नहीं होती<br />बौखलाए फिरते हैं इधर-उधरख़ूबसूरत नर्सें कम नहीं कर सकतीं<br />गौण हो गया है सब-कुछपेशानी पृथ्वी घूम रही हैउनके सीने में धँसी ज़ंग लगी कील पर झूलती लटों से<br />ब्रेन-टयूमर से होने वाले दर्द किसी को<br />पहली बार देख रहे हैंजब मरीज़ आखिरी गाँठ खोल रहा हो<br />बची-खुची साँसों से बंधी पोटली की<br />इस तरह छटपटाते हुए
तैयार बैठे हैं सगे-सम्बंधी<br />नहीं आएगा डॉक्टर और यमदूत से झगड़ने के लिए<br />बौखलाए फिरते हैं इधर-उधर<br />जब तक चाय की एक घूँट भीगौण हो गया बची है सब-कुछ<br />उसकी प्याली मेंपृथ्वी घूम रही अति भावुकता, संवेदनशीलताकैसे हो सकता है<br />एक डॉक्टर का धर्मउनके सीने आते ही रहते हैं अस्पताल में धँसी ज़ंग लगी कील पर<br />किसी को पहली बार देख रहे हैं<br />इस तरह छटपटाते हुए <br />ऐसे मरीज़ हर रोज़
नहीं आएगा डॉक्टर<br />जब तक चाय की एक घूँट भी<br />बची है उसकी प्याली में<br />अति भावुकता, संवेदनशीलता<br />कैसे हो सकता है एक डॉक्टर का धर्म<br />आते ही रहते हैं अस्पताल में<br />ऐसे मरीज़ हर रोज़<br /> ऐसा नहीं होना चाहिये<br />मेरी कविता का अंत<br />एहसास है मुझे भी<br />लेकिन क्या करूँ<br />चाय में गिरी हुई मक्खी अब मर चुकी है !<br /poem>